अपनी खुद की कोई भी रचना, निर्मिती का आनंद भला किसे नहीं होता और उसी की तारीफ हमारे मित्र, सहेलियां, ... अपनी खुद की कोई भी रचना, निर्मिती का आनंद भला किसे नहीं होता और उसी की तारीफ हमा...
गायों को केवल चराने के लिये चारागाह या घास के मैदानों में नहीं लेकर जाते थे। गायों को केवल चराने के लिये चारागाह या घास के मैदानों में नहीं लेकर जाते थे।
ऐसा सयानों ने कहा है जैसे उनके दिन फिरे सबके फिरे। ऐसा सयानों ने कहा है जैसे उनके दिन फिरे सबके फिरे।
मैं अकेला चला था, अकेला चलूंगा... शायद ईश्वर भी यही चाहते हैं। मैं अकेला चला था, अकेला चलूंगा... शायद ईश्वर भी यही चाहते हैं।
कितना लिखूं, क्या-क्या लिखूं ? कितना कुछ है लिखने को। कितना लिखूं, क्या-क्या लिखूं ? कितना कुछ है लिखने को।
इस लिए मुहावरा कहा जाता है कि कोयले के काम में हाथ काले हो ही जाते हैं। इस लिए मुहावरा कहा जाता है कि कोयले के काम में हाथ काले हो ही जाते हैं।